सोजाक (Sojak)
सोजाक एक लिंगेन्द्रिय रोग है, जो उपदंश की तरह संक्रमण के कारण ही होता है। इसे बढ़ाने में गोनोकोकस नामक सूक्ष्म कीटाणु (बैक्टिरिया) कारण होता है। इस रोग में लिंग के अंदर घाव हो जाता है और इसमें से पस (पीप) निकलता रहता है।
इसे हिन्दी में पूयमेह, औपसर्गिक पूयमेह और परमा कहते हैं और अँग्रेजी भाषा में गोनोरिया कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे क्लेप के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
स्त्रियों को जब यह रोग होता है तो यह रोग गर्भाशय, डिम्बनलिका (फेलोपियन ट्यूब), डिम्बाशय (ओवरी) तथा उदर तक को प्रभावित कर देता है। इसका परिणाम यह होता है कि स्त्री बांझ भी हो जाती है। यदि स्त्री गर्भवती है तो शिशु की आँखों में पीप लगने से शिशु को नेत्रदोष हो जाता है। पश्चिम देशों में इसे क्लेप के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
नोट : अयुर्वेद में इस रोग का उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और भारतीय वैद्यों के अनुभव एवं अभिमत के आधार पर ही इसकी चिकित्सा व विवरण की जानकारी दी जा रही है। इन उपायों से सोजाक रोग ठीक न हो तो फिर सिवाय इसके कोई चारा नहीं कि किसी योग्य चिकित्सक से ही चिकित्सा कराई जाए।
कारण : इसे पूयमेह भी कहते हैं। ऋतुमती स्त्री या वेश्या के साथ सहवास करने, निकलने वाले वीर्य को रोक देने से वीर्य अंदर ही रुक जाता है और घाव पैदा कर देता है। शराब और तेज मसालेदार पदार्थों के सेवन और इस रोग के रोगी के साथ रहने से यह रोग उत्पन्न होता है। यह उपदंश और गरमी रोग जैसा ही है पर उससे अलग और संक्रामक (छूत का) रोग है। इस रोग से ग्रस्त स्त्री, पुरुष के साथ सहवास करने वाले को यह रोग पकड़ लेता है और उसकी शारीरिक क्षमता व शक्ति के अनुसार कम से कम 1-2 दिन या ज्यादा से ज्यादा 10-15 दिन में कभी भी इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
लक्षण : इसका प्रभाव होने पर जननेन्द्रिय पर सूजन आती है, घोर जलन और खुजली होती है, शिश्नमुण्ड लाल हो जाता है व सूजकर फूल जाता है और उसे दबाने से मूत्रनली से सफेद रंग का गाढ़ा चेप सा निकलता है। अंदर मूत्र मार्ग में हुआ घाव सूखकर सिकुड़ता है, जिससे शिश्न संकोचन की स्थिति बनती है, इस स्थिति में मूत्र मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
* पेशाब रुक-रुककर तीव्र जलन के साथ होती है और जितनी बार पेशाब होती है, उतनी बार तीव्र वेदना होती है। इस रोग की चिकित्सा लक्षण प्रकट होते ही कर ली जाए तो यह ठीक हो जाता है अतः ऐसे रोगी को इलाज में विलंब और लापरवाही नहीं करना चाहिए।
* इस रोग के रोगी को रात में लिंगेन्द्रिय में तनाव महसूस होता है। रोग जैसे-जैसे पुराना होता जाता है, वैसे-वैसे जलन व दर्द में कमी होती जाती है, लेकिन सफेद गाढ़ा पीप आता रहता है। कुछ दिनों तक रोग दब जाता है और बदपरहेजी करने पर फिर प्रकट हो जाता है। रोग पुराना हो जाने पर शरीर में प्रवेश कर जाता है और असाध्य हो जाता है।
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