प्रजनन वाहिका तन्त्र के आखिरी भाग को मूत्रमार्ग (पुरुष का मूत्रमार्ग) कहते हैं। यह मूत्राशय से निकलकर प्रोस्टेट ग्रंथि से होता हुआ लिंग के बाह्य मूत्रमार्गीय छिद्र पर खुलता है। मूत्रत्याग के दौरान मूत्राशय से मूत्र को तथा स्खलन के दौरान वीर्य को शरीर से बाहर निकालने का कार्य मूत्रमार्ग का ही होता है। मूत्रत्याग और स्खलन की क्रिया एकसाथ नहीं किया जा सकता है क्योंकि स्खलन से बिल्कुल पहले आतंरिक संकोचिनी मूत्राशय के छिद्र को बंद कर देती है। स्खलन पूरा होने तक यह संकोचिनी शिथिल नहीं होती। आतंरिक संकोचिनी के बंद होने से न तो मूत्र उतर सकता है और न ही वीर्य मूत्राशय में वापस जा सकता है।
पुरुष मूत्रमार्ग के तीन भाग होते हैं- मूत्रमार्ग का मूत्राशय के आधार से शुरु होकर प्रोस्टेट ग्रंथि से गुजरते हुए उसके अंत तक पहुंचने वाले भाग को प्रोस्टेटिक भाग (prostatic portion) कहते हैं। यहां इसे प्रोस्टेट ग्रंथि की सूक्ष्म वाहिकाओं और दो स्खलनीय वाहिकाओं से स्राव प्राप्त होते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि से बाह्य मूत्राशयी संकोचिनी पेशी तक का भाग कलामय भाग (membranous portion) कहलाता है। मूत्रमार्ग का आखिरी शिश्नीय भाग (penile portion), लिंग के अंदर रहने वाले सम्पूर्ण स्पन्जी भाग से लेकर लिंगमुण्ड पर बाह्य मूत्रमार्गीय छिद्र तक होता है। यहां लिंग से मूत्र अथवा वीर्य निकलता है। मूत्रमार्ग की भित्ति पर श्लेष्मिक कला (mucous membrane) का अस्तर रहता है तथा चिकनी पेशी की एक मोटी बाहरी परत रहती है, जो अनैच्छिक रूप से संकुचित होती है। भित्ति के भीतर मूत्रमार्गीय ग्रंथियां (urethral glands) होती है, जो मूत्रमार्गीय नली (urethral canal) में श्लेष्मा का स्राव करती है।
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Sex Therepi
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