परिपक्व शुक्राणु (mature sperm) सूक्ष्म लम्बाकार होता है। इसके शरीर के तीन भाग होते हैं- सिर (head) ग्रीवा (neck) और पूंछ (tail)। इसका सिर अण्डाकार होता है तथा इसके अगले नुकीले भाग पर एन्जाइम्स वाली टोपीनुमा मेम्ब्रेन (झिल्ली) रहती है। इसके द्वारा शुक्राणु स्त्री के डिम्ब (ovum) को बेधकर उसमें प्रवेश कर जाता है। सिर के मध्य भाग में केंद्रक होता है जिसमें गुणसूत्र (chromosomes) रहते हैं। ग्रीवा या मध्य भाग सिर के पीछे पतली रचना होती है, जिसमें मुख्यतः कुण्डलित माइटोकोण्ड्रिया रहती है जो इसकी गतिशीलता के लिए ऊर्जा उपलब्ध करती है। पुच्छ (पूंछ) ग्रीवा के पीछे बहुत पतली और लम्बी रचना होती है जिसकी मदद से शुक्राणु शुक्र रस में इधर-उधर तैरता हुआ आगे बढ़ता है। तैरने की इस क्षमता को ‘गतिशीलता’ या मोटिलिटी (motility) कहा जाता है जो पुरुष फर्टिलिटी के लिए बहुत जरूरी होती है।
शुक्राणु वृषण की शुक्रजनक नलिकाओं से पैदा होने वाली पुरुष जनन कोशिकाएं होती है। सिर के अगले सिरे से लेकर पुच्छ (पूंछ) के अंतिम सिरे तक इसकी लम्बाई लगभग 0.05 मिलीलीटर (5 माइक्रोन) होती है। प्रत्येक शुक्राणु पूरी तरह से परिपक्व होने में 2 महीने से अधिक का समय लेता है।
एक बार के स्खलन में सामान्यतः 300 से 500 मिलियन (30-50 करोड़) शुक्राणु मुक्त होते हैं। यदि शुक्राणुओं की संख्या लगभग 20-30 मिलियन से कम रहती है तो ऐसे व्यक्ति संतान पैदा करने में असमर्थ (infertile) होते हैं। इस दशा को अल्पशुक्राणुता (oligospermia) कहा जाता है। शुक्राणुओं की पूर्ण अभाव वाली दशा को अशुक्राणुता (Azoospermia) कहा जाता है। अशुक्राणुता, रजित (सेक्स) रोगों (sexually transmitted diseases) के परिणाम स्वरूप हो सकती है, जो शुक्राणु उत्पादन में रुकावट होने से होता है अथवा
कनफेड़ (mumps) जैसे रोगों के कारण होती है। इसमें शुक्रजनक नलिकाओं की आतंरिक कला नष्ट हो जाती है।
शुक्राणुओं का उत्पादन शुक्रजनक नलिकाओं में लगातार होता रहता है परंतु इनकी परिपक्वता अधिवृषण (epididymis) में होती है।
Thanks For Reading
Sex Therepi
Post a Comment