यह अधिवृषण की वाहिका (ductus epididymis) की निरंतरता में फैली हुई नली होती है। ये संख्या में दो होती है और प्रत्येक वृषण की अधिवृषण एवं स्खलनीय वाहिका के बीच में स्थित होती है। प्रत्येक शुक्रवाहिका अधिवृषण की पुच्छ से गुजरकर, वृषण रज्जु (स्पर्मेटिक कॉर्ड) (इसमें टेस्टीकुलर धमनी,
शिराएं , ऑटोनॉमिक तंत्रिकाएं,
लसीका वाहिनियां एवं संयोजी
ऊतक का समावेश रहता है) से ढकी रहती है। वृषणकोष से निकलने के बाद ऊपर की ओर बढ़कर शुक्र वाहिकाएं वंक्षणीय नाल (inguinal canal) के रास्ते से होकर उदरीय भित्ति के निचले भाग में प्रवेश करती है। यहां शुक्र वाहिकाएं वृषण रज्जु (स्पर्मेटिक कॉर्ड) से आजाद हो जाती है तथा मूत्राशय के पीछे से गुजरकर प्रोस्टेट ग्रंथि के पास स्थित शुक्राशय (seminal vesicle) की वाहिका से जुड़ जाती है और स्खलनीय वाहिका (ejaculatory duct) कहलाती है।
शुक्राशय तक पहुंचने से बिल्कुल पहले शुक्र वाहिका चौड़ी हो जाती है। यह चौड़ा भाग एम्पूला (ampulla) कहलाता है जिसमें स्खलन से पहले शुक्राणु जमा रहते
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